श्रीनिवास रामानुजन, भारतीय गणित के इतिहास में एक ऐसा नाम है जो अद्वितीय प्रतिभा, गहन कल्पना और साधारण जीवन का प्रतीक है। उनकी गणितीय क्षमता और योगदान इतने अद्वितीय थे कि आज भी वे प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण, और सफलता की कहानी है।
प्रारंभिक जीवन
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता कुम्हार का काम करते थे, और माता गृहिणी थीं। प्रारंभ से ही, रामानुजन गणित के प्रति गहरी रुचि रखते थे। जब वे केवल 13 वर्ष के थे, तब उन्होंने उन्नत गणितीय अवधारणाओं को आत्मसात करना शुरू कर दिया था।
16 वर्ष की आयु में, उन्होंने जॉर्ज शूब्रिज कैर की पुस्तक ‘सिंथेटिक जियोमेट्री’ से प्रेरणा लेकर गणितीय प्रमेयों को विकसित करना शुरू किया। स्कूल में वे अपने असाधारण गणितीय कौशल के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन अन्य विषयों में रुचि की कमी के कारण वे परीक्षा में असफल रहे।
गणितीय योगदान
रामानुजन के गणितीय कार्यों में मुख्य रूप से संख्या सिद्धांत, अभाज्य संख्याएँ, असीम श्रेणियाँ, और गामा फलन शामिल हैं। उनकी कई प्रमेय इतनी उन्नत थीं कि उन्हें समझने के लिए विश्व के श्रेष्ठ गणितज्ञों को वर्षों तक काम करना पड़ा।
उनकी खोजों में सबसे प्रसिद्ध हैं:
- रामानुजन संख्याएं: 1729 एक विशेष संख्या है जिसे “रामानुजन-हार्डी संख्या” कहा जाता है। यह दो अलग-अलग तरीकों से दो संख्याओं के घनों के योग के रूप में अभिव्यक्त की जा सकती है।
- मॉक थीटा फंक्शन: ये जटिल विश्लेषण और संख्या सिद्धांत के बीच संबंधों को समझने में सहायक होते हैं।
- पाई का सूत्र: उन्होंने पाई (π) के लिए असाधारण सटीक और तेज़ सूत्र दिए।
हार्डी के साथ सहयोग
रामानुजन की प्रतिभा को पहचानने वाले पहले व्यक्ति जी.एच. हार्डी थे, जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणितज्ञ थे। हार्डी ने रामानुजन के पत्र को पढ़ने के बाद उन्हें कैम्ब्रिज बुलाया। इस सहयोग से गणित में कई नई खोजें हुईं। हार्डी ने रामानुजन को “प्राकृतिक गणितीय प्रतिभा” करार दिया।
संघर्ष और स्वास्थ्य
यद्यपि रामानुजन को कैम्ब्रिज में पहचान मिली, लेकिन वहां का ठंडा मौसम और खानपान उनके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं था। 1919 में वे भारत लौट आए, लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण 32 वर्ष की अल्पायु में 26 अप्रैल 1920 को उनका निधन हो गया।
विरासत
रामानुजन का कार्य आज भी गणितीय अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी नोटबुक्स में लिखे गए प्रमेय और सिद्धांत अब भी शोधकर्ताओं के लिए रहस्य बने हुए हैं। भारत में उनके सम्मान में 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है।
निष्कर्ष
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन हमें यह सिखाता है कि साधारण परिस्थितियों में भी असाधारण सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनकी गणितीय गहराई और अद्वितीय दृष्टिकोण ने गणित को एक नई दिशा दी। वे केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
“गणित की सुंदरता वही देख सकता है, जिसके पास रामानुजन जैसी दृष्टि हो।”